dard shayari part - 2

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dard shayari

आँसू गिरने की आहट नही होती;
दिल के टूटने की आवाज नहीं होती;
गर होता उन्हें एहसास दर्द का;
तो दर्द देने की उन्हें आदत नहीं होती।

कोई समझता नहीं उसे इसका गम नहीं करता;
पर तेरे नजरंदाज करने पर हल्का सा मुस्कुरा देता है;
उसकी हंसी में छुपे दर्द को महसूस तो कर;
वो तो हंस के यूँ ही खुद को सजा देता है।

कितना दर्द है दिल में दिखाया नहीं जाता;
गंभीर है किस्सा सुनाया नहीं जाता;
एक बार जी भर के देख लो इस चहेरे को;
क्योंकि बार-बार कफ़न उठाया नहीं जाता।

आज आपके प्यार में कमी देखी;
चाँद की चांदनी में कुछ नमी देखी;
उदास होकर लौट आए हम;
जब महफ़िल आपकी गैरों से सजी देखी।

ना पूछ मेरे सब्र की इंतेहा कहाँ तक है;
तु सितम कर ले, तेरी हसरत जहाँ तक है;
वफ़ा की उम्मीद, जिन्हें होगी उन्हें होगी;
हमें तो देखना है कि तु बेवफ़ा कहाँ तक है।

आँखों में रहा दिल में उतर कर ना देखा;
कश्ती के मुसाफिर ने समंदर ना देखा;
पत्थर मुझे कहता है मुझे चाहने वाला;
मैं मोम हूँ उसने मुझे छु कर ना देखा।

मुझको ऐसा दर्द मिला जिसकी दवा नहीं;​
​फिर भी खुश हूँ मुझे उस से कोई गिला नहीं​;
​​और कितने आंसू बहाऊँ उस के लिए​;
​​जिसको खुदा ने मेरे नसीब में लिखा ही नहीं।

मेरा ख़याल ज़ेहन से मिटा भी न सकोगे;
एक बार जो तुम मेरे गम से मिलोगे;
तो सारी उम्र मुस्करा न सकोगे।

बेखुदी ले गई कहाँ हमको;
देर से इंतज़ार है अपना;
रोते फिरते हैं सारी-सारी रात;
अब यही बस रोज़गार है अपना।

नया दर्द एक और दिल में जगा कर चला गया​;​
​​ कल फिर वो मेरे शहर में आकर चला गया​;​
​​ जिसे ढूंढ़ता रहा मैं लोगों ​की भीड़ में;​
​​ मुझसे वो अप​ने आप ​को छुपा कर चला गया।

दर्द की महफ़िल में एक शेयर हम भी अर्ज़ किया करते हैं;
न किसी से मरहम न, दुआओं कि उम्मीद किया करते हैं;
कई चेहरे लेकर लोग यहाँ जिया करते हैं;
हम इन आँसुओं को एक चेहरे के लिए पिया करते हैं|

तेरी आरज़ू मेरा ख्वाब है;
जिसका रास्ता बहुत खराब है;
मेरे ज़ख्म का अंदाज़ा न लगा;
दिल का हर पन्ना दर्द की किताब है।

कही ईसा, कहीं मौला, कहीं भगवान रहते है;
हमारे हाल से शायद सभी अंजान रहते हैं;
चले आये, तबीयत आज भारी सी लगी अपनी;
सुना था आपकी बस्ती में कुछ इंसान रहते है।

वक़्त की रफ़्तार रुक गई होती;
शर्म से आँखे झुक गई होती;
अगर दर्द जानती शमा परवाने का;
तो जलने से पहले बुझ गई होती।

लौट जाती है दुनिया गम हमारा देख कर;
जैसे लौट जाती हैं लहरें किनारा देखकर;
तुम कंधा ना देना मेरे जनाज़े को;
कहीं फिर से ज़िंदा ना हो जाऊँ तेरा सहारा देखकर।

ना ये महफिल अजीब है, ना ये मंजर अजीब है;
जो उसने चलाया वो खंजर अजीब है;
ना डूबने देता है, ना उबरने देता है;
उसकी आँखों का वो समंदर अजीब है।

​दर्द से अब हम खेलना सीख गए;​
​हम बेवफाई के साथ जीना सीख गए;​
​ क्या बताएं किस कदर दिल टूटा है मेरा​;​
​मौत से पहले, कफ़न ​ओढ़ कर सोना सीख गए।

​ना जाने क्यूँ नज़र लगी ज़माने की;
अब वजह मिलती नहीं मुस्कुराने की;
तुम्हारा गुस्सा होना तो जायज़ था;
हमारी आदत छूट गयी मनाने की।

​क्या गिला करें उन बातों से​;
​क्या शिक़वा करें उन रातों से​​​;
​​कहें भला किसकी खता इसे हम​;
​​कोई खेल गया फिर से जज़बातों से​।

हो चुके अब तुम किसी के;
कभी मेरी ज़िंदगी थे तुम;
भूलता है कौन मोहब्बत पहली;
मेरी तो सारी ख़ुशी थे तुम।

जिंदगी भर दर्द से जीते रहे;
दरिया पास था आंसुओं को पीते रहे;
कई बार सोचा कह दू हाल-ए-दिल उससे;
पर न जाने क्यूँ हम होंठो को सीते रहे।

ज़रा सी ज़िंदगी है, अरमान बहुत हैं;
हमदर्द नहीं कोई, इंसान बहुत हैं;
दिल के दर्द सुनाएं तो किसको;
जो दिल के करीब है, वो अनजान बहुत है!

दर्द कितना है बता नहीं सकते;
ज़ख़्म कितने हैं दिखा नहीं सकते;
आँखों से समझ सको तो समझ लो;
आँसू गिरे हैं कितने गिना नहीं सकते।

वो देता है दर्द बस हमी को;
क्या समझेगा वो इन आँखों की नमी को;
​चाहने वालों की भीड़ से घिरा है जो हर वक़्त;
वो महसूस ​क्या ​करेगा ​बस ​एक हमारी कमी को। ​

चाहत की राह में बिखरे अरमान बहुत है;
हम उसकी याद में परेशान बहुत हैं;
वो हर बार दिल तोड़ता है यह कह कर;
मेरी उम्मीदों के दुनियाँ में अभी मुकाम बहुत हैं।

देख कर मेरा नसीब मेरी तक़दीर रोने लगी;
लहू के अल्फाज़ देख कर तहरीर रोने लगी;
हिज्र में दीवाने की हालत कुछ ऐसी हुई;
सूरत को देख कर खुद तस्वीर रोने लगी।

वो तो अपने दर्द रो-रो कर सुनाते रहे;
हमारी तन्हाईयों से आँखें चुराते रहे;
और हमें बेवफ़ा का नाम मिला;
क्योंकि हम हर दर्द मुस्कुरा कर छिपाते रहे।

चीज़ बेवफ़ाई से बढ़कर क्या होगी;
ग़म-ए-हालात जुदाई से बढ़कर क्या होगी;
जिसे देनी हो सज़ा उम्र भर के लिए;
सज़ा तन्हाई से बढ़कर क्या होगी।

टूटा हो दिल तो दुःख होता है;
करके मोहब्बत किसी से ये दिल रोता है;
दर्द का एहसास तो तब होता है;
जब किसी से मोहब्बत हो और उसके दिल में कोई और होता है।

ज़ख्म जब मेरे सीने के भर जाएंगे;
आंसू भी मोती बन के बिखर जाएंगे;
ये मत पूछना किसने दर्द दिया;
वरना कुछ अपनों के सर झुक जाएंगे।

किया इश्क़ ने मेरा हाल कुछ ऐसा;
ना अपनी खबर ना ही दिल का पता है;
कसूरवार थी मेरी ये दौर-ए-जवानी;
मैं समझता रहा सनम की खता है।

ग़म के दरियाओं से मिलकर बना है यह सागर;
आप क्यों इसमें समाने की कोशिश करते हो;
कुछ नहीं है और इस जीवन में दर्द के सिवा;
आप क्यों इस ज़िंदगी में आने की कोशिश करते हो।

मोहब्बत करने वालों का यही हश्र होता है;
दर्द-ए-दिल होता है, दर्द-ए-जिगर होता है;
बंद होंठ कुछ ना कुछ गुनगुनाते ही रहते हैं;
खामोश निगाहों का भी गहरा असर होता है।

​शहर क्या देखें, के हर मंज़र में जाले पड़ गए​;​
ऐसी गर्मी है, कि पीले फूल काले पड़ गए​;​
मैं अँधेरों से बचा लाया था अपने आप को​;​
मेरा दुख ये है, मेरे पीछे उजाले पड़ गए।

हँसते हुए ज़ख्मों को भुलाने लगे हैं हम;
हर दर्द के निशान मिटाने लगे हैं हम;
अब और कोई ज़ुल्म सताएगा क्या भला;
ज़ुल्मों सितम को अब तो सताने लगे हैं हम।

तेरी यादों के सितम सहते हैं हम;
आज भी पल-पल तेरी यादों में मरते हैं हम;
तुम तो चले गए बहुत दूर, हमको इस दुनियां में तन्हा छोड़कर;
पर तुम क्या जानो, बैठकर तन्हाई में किस कदर रोते हैं हम।

उल्फत का यह दस्तूर होता है;
जिसे चाहो वही हमसे दूर होता है;
दिल टूट कर बिखरता है इस क़द्र जैसे;
कांच का खिलौना गिरके चूर-चूर होता है!

सबने कहा इश्क़ दर्द है;
हमने कहा यह दर्द भी क़बूल है;
सबने कहा इस दर्द के साथ जी नहीं पाओगे;
हमने कहा इस दर्द के साथ मरना भी क़बूल है।

दोस्ती जब किसी से की जाये तो दुश्मनों की भी राय ली जाये;
मौत का ज़हर है फिज़ाओं में अब कहाँ जा कर सांस ली जाये;
बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ कि ये नदी कैसे पार की जाये;
मेरे माज़ी के ज़ख़्म भरने लगे हैं आज फिर कोई भूल की जाये।

जो नजर से गुजर जाया करते हैं;
वो सितारे अक्सर टूट जाया करते हैं;
कुछ लोग दर्द को बयां नहीं होने देते,
बस चुपचाप बिखर जाया करते हैं।

धड़कन बिना दिल का मतलब ही क्या;
रौशनी के बिना दिये का मतलब ही क्या;
क्यों कहते हैं लोग कि मोहब्बत न कर दर्द मिलता है;
वो क्या जाने कि दर्द बिना मोहब्बत का मतलब ही क्या।

बहुत अजीब हैं ये बंदिशें मोहब्बत की;
कोई किसी को टूट कर चाहता है;
और कोई किसी को चाह कर टूट जाता है।

समझौतों की भीड़-भाड़ में सबसे रिश्ता टूट गया;
इतने घुटने टेके हमने आख़िर घुटना टूट गया;
ये मंज़र भी देखे हमने इस दुनिया के मेले में;
टूटा-फूटा ​ बचा​ रहा है, अच्छा ख़ासा टूट गया।

दिल पे क्या गुज़री वो अनजान क्या जाने;
प्यार किसे कहते है वो नादान क्या जाने;
हवा के साथ उड़ गया घर इस परिंदे का;
कैसे बना था घौंसला वो तूफान क्या जाने।

आज फिर तेरी याद आयी बारिश को देख कर;
दिल पे ज़ोर न रहा अपनी बेबसी को देख कर;
रोये इस कदर तेरी याद में;
कि बारिश भी थम गयी मेरी बारिश को देख कर।

हर सितम सह कर कितने ग़म छिपाये हमने;
तेरी खातिर हर दिन आँसू बहाये हमने;
तू छोड़ गया जहाँ हमें राहों में अकेला;
बस तेरे दिए ज़ख्म हर एक से छिपाए हमने।

कहाँ कोई ऐसा मिला जिस पर हम दुनिया लुटा देते;
हर एक ने धोखा दिया, किस-किस को भुला देते;
अपने दिल का ज़ख्म दिल में ही दबाये रखा;
बयां करते तो महफ़िल को रुला देते।

कभी कभी मोहब्बत में वादे टूट जाते हैं;
इश्क़ के कच्चे धागे टूट जाते हैं;
झूठ बोलता होगा कभी चाँद भी;
इसलिए तो रुठकर तारे टूट जाते हैं।

बिछड़ के तुम से ज़िंदगी सज़ा लगती है;
यह साँस भी जैसे मुझ से ख़फ़ा लगती है;
तड़प उठता हूँ दर्द के मारे, ज़ख्मों को जब तेरे शहर की हवा लगती है;
अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किस से करूँ;
मुझ को तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफ़ा लगती है।

हर सितम सह कर कितने गम छिपाए हमने;
तेरी ख़ातिर हर दिन आँसू बहाए हमने;
तू छोड़ गया जहाँ हमें राहों में अकेला;
बस तेरे दिए ज़ख्म हर एक से छिपाए हमने।


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